रम गयी माँ मेरे रोम रोम में Ram Gayi Maya mere Rom Rom Mein

 Ram Gayi Maya mere Rom Rom Mein

रम गयी माँ मेरे रोम रोम में

रम गयी माँ मेरे रोम रोम में
रम गयी माँ मेरे रोम रोम में

रम गयी माँ मेरे रोम रोम में,
रम गयी माँ मेरे रोम रोम में

मेरी सांसो में अम्बे के नाम की धारा बहती
इसीलिए तो मेरी जिह्वा हर समय ये कहती
" रम गयी माँ मेरे रोम रोम में "

जहा भी जाऊ, जिधर भी देखू
जहा भी जाऊं, जिधर भी देखू

अष्टभुजी माता के, ये रंग ऐसा जिसके
आगे और सभी रंग फीके भक्तो

और सभी रंग फीके भक्तो,
और सभी रंग फीके भक्तो

आंधी आये तूफ़ान आया,
पर ना भरोसा ना डोला
नाम दीवाना भक्त जानू,
यही झूम के बोला

" रम गयी माँ मेरे रोम रोम में "
दुःख सुख भक्तो, इस जीवन को
दुःख सुख भक्तो, इस जीवन को,

एक बराबर लागे
मंन में माँ की ज्योति जगी है,
इधर उधर क्यों भागे

इधर उधर क्यों भागे,
इधर उधर क्यों भागे

सपने में जब वैष्णों माँ ने,अध्भुत रूप दिखाया
मस्ती में बावरे हो कर श्रीधर ने फरमाया

" रम गयी माँ मेरे रोम रोम में "
मंन चाहे अब, मंन चाहे अबमाँ के दर का मैं सेवक बनजाऊ
माँ के भक्तो की सेवा में सारी उम्र बिताओ

सारी उम्र बिताओ, सारी उम्र बिताओ
छिन्न मस्तिका चिंता हरणी नैनन बीच समायी
मस्ताना हो भाई दास ने ये ही रत लगाईं

" रम गयी माँ मेरे रोम रोम में "
मेरी सांसो में अम्बे के नाम की धारा बहती
इसीलिए तो मेरी जिह्वा हर समय ये कहती

रम गयी माँ मेरे रोम रोम में
रम गयी माँ मेरे रोम रोम में
"रम गयी माँ मेरे रोम रोम में 

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