वैदिक ज्योतिष व लाल किताब की सहायता से किसी जातक के जीवन में उत्पन्न विभिन्न श्रापों / दोषों की पहचान संभव है। उसकी जन्मकुण्डली से यह भी पता चल जाता है कि उसमें किस तरह का दोष
ऋण मुक्ति के लिए श्री गणेश की पूजा श्रेष्ठ मानी जाती है। मंगल, बुध, केतु आदि ग्रहों के कारण उत्पन्न कर्ज से राहत के लिए ऋणमुक्ति गणेशस्तोत्र उपयोगी है...
किसी स्त्री जातक से जाने-अनजाने कई तरह के अपराध व पाप कर्म होते रहते हैं। इनके कारण उसके जीवन में अनेक बाधाएं उत्पन्न होती रहती है। दुर्भाग्य उत्पन्न होता रहता है। उसका प्रारब्ध *(संचित कर्म) ही उसके इस जन्म का भाग्य बन जाता है।
कई बार ऐसा देखने-सुनने को मिलता है कि किसी जातक के कार्य में कोई दोष नहीं होता, फिर भी उसे अनेक प्रकार की बाधाओं का सामना करना पड़ता है। दरअसल इन बाधाओं का कारण होता हे पितर दोष यानि पितरों (पूर्वजों) का ऋण कुछ जातकों को अपने • पितरों द्वारा किए गए कर्मों का फल भी भोगना पड़ता है और पितर अपनी संतान या अपने परिवार की उन्नति में बाधाएं उत्पन्न करते हैं। महर्षि पाराशर ने वृहत् पाराशर होरा शास्त्र में अनेक प्रकार के श्रापों /दोषों जैसे-पितृ ऋण, मातृ ऋण, गुरू ऋण, दैवीय ऋण, पत्नी ऋण आदि का उल्लेख किया है।
इन ऋणों की वजह से कठोर परिश्रम करने के बाद भी जातक को शुभ फल नहीं मिलते। उसके विवाह में बाधा आती है या उसका विवाह बहुत विलंब से होता है। विवाह के बाद संतान में बाधा आती है। घर में अचानक दुर्घटना घट जाती है। यदि कोई बीमार पड़ता है तो जल्दी ठीक नहीं होता। परिवार के सदस्यों में आपसी अनबन रहती है।
कर्ज के बोझ तले दबे रहना, संतान की मानसिक स्थिति खराब रहना, किसी भी कार्य या व्यवसाय में सफल न होना, गलती किए बिना सरकारी दंड का भागी बनना आदि पितर दोष के प्रमुख प्रभाव है। वैदिक ज्योतिष व लाल किताब की सहायता से किसी जातक के जीवन में उत्पन्न विभिन्न श्रापों / दोषों की पहचान संभव है। उसकी जन्मकुण्डली से यह भी पता चला जाता है कि उसमें किस तरह का दोष है।
पितृ ऋण
बृहस्पति के अशुभ होने से जातक को हर क्षेत्र में बाधाएं, निराशा, आर्थिक कष्ट, मानहानि आदि होती है। उपाय-
धर्म स्थल में सेवा करने, पीपल के वृक्ष लगवाने, गुरू का आशीर्वाद लेने आदि से इस ऋण से मुक्ति संभव है। मातृ ऋण-
जन्मकुण्डली में चंद्रमा का अशुभ होना या केतु का चतुर्थस्थ होना इसकी सबसे बड़ी पहचान है। माता की सेवा नहीं करने, उनका ध्यान नहीं रखने, उन्हें दुःख देने आदि से यह दोष उत्पन्न होता है।
प्रभाव यह दोष होने से जातक रोग व ऋण से ग्रस्त रहता है।
पितृ ऋण उपाय
परिवार का प्रत्येक सदस्य यदि एक समान मात्रा में चांदी, चावल व दूध लेकर सोमवार को बहते जल में प्रवाहित करें, तो मातृ ऋण से मुक्ति मिलती है।
स्व ऋण
जन्मकुण्डली में सूर्य अशुभ हो या पंचम भाव में शुक्र या कोई अन्य पाप ग्रह स्थित हो, तो सूर्य पीड़ित होता है। इस दोष से पीड़ित जातक अधार्मिक, नास्तिक तथा संस्कारों व परंपराओं का विरोधी होता है।
प्रभाव
इस दोष से पीड़ित जातक सरकार से दंड पाता है। उसे हृदय व त्वचा रोग होने की संभावना रहती है। निर्दोष होने पर भी उसे राजदंड मिलता है।
उपाय कुटुंब के सभी लोगों द्वारा सूर्य यज्ञ करने से इस ऋण से मुक्ति मिलती है।
स्त्री ॠण
जन्मकुण्डली के द्वितीय या सप्तम भाव में सूर्य के स्थित होने से शुक्र पीड़ित होता है। किसी स्त्री को सताने, उसके साथ धोखा करने, लालच में आकर उसे मारने, गर्भ ठहराकर उसे न अपनाने आदि से स्त्री ऋण होता है।
प्रभाव
जन्मकुण्डली में बृहस्पति का अशुभ होना इसकी सबसे बड़ी पहचान है। बृहस्पति अशुभ तब होता है जब कोई किसी धर्मस्थल, गुरू इस दोष से पीड़ित जातक के यहां जब भी कोई मांगलिक तुल्य व्यक्ति या किसी बुजुर्ग का अपमान करता है या पीपल के वृक्ष कार्य होता है, उसे मौत संबंधी कोई न कोई अशुभ समाचार मिलते हैं।
उपाय
गाय की सेवा करने से इस ऋण से मुक्ति मिलती है।